वेरिकोस वेन्स का इलाज

डॉ. प्रबल रॉय

जनरल एंव एडवांस सर्जरी विभाग डायरेक्टर

एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस फरीदाबाद

अगर आपको ज्यादा खड़े रह कर काम करने की आदत है या खेड़े होकर काम करना आपकी मजबूरी है और ऐसे में आपके पैरों में दर्द, भारीपन और थकान महसूस होती है तो सावधान हो जाएं। रोजाना ऐसे काम करने से आपको वेरिकोस वेन्स नामक बीमारी हो सकती है। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में XV से XX प्रतिशत लोग आज वेरिकोस विन्स के शिकार हैं। पुरूषों के मुकाबले महिलाओं में यह बीमारी चार गुना अधिक देखने को मिलती है।

महिलाओं की पांच सबसे कोमन बीमारियों में वेरिकोस विन्स भी शामिल है। गर्भवति महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान रक्त का संचालन पैरों से ह्दय तक सुचारूरूप नहीं हो पाता है जिस कारण रक्त पैरों की नसों में ही जमा होने लगाता है।

ऐसे में पैरों की नसों में रक्त के प्रवाह को संतुलित रखने वाले वाल्व काम करना बंद कर देते हैं और रक्त का संचालन बिगड़ जाता है फिर धीरे-धीरे यह रक्त पैरों की नसों में इकठ्ठा होने लगता है। जिसके कारण पैरों में दर्द होने लगता है, सूजन आ जाती है, खून का रंग बदल जाता है, त्वाचा खुदरी और काली पड़ जाती है और नसों में जमा खून बाहर निकलने लगता है और उस जगह जख्म बन जाता है। इस बीमारी की कोई आयुसीमा नहीं है।

 

युवाओं में यह बीमारी XX साल के बाद शुरू हो जाती है। वहीं बुजुर्गो में XL से L साल की आयु में यह बीमारी देखने को मिलती है। इस बीमारी से ठीक होने के लिए खराब हुई नसों से रक्त प्रवाह को बंद करना पड़ता है।

वेरिकोस विन्स का इलाज

पहले इसके इलाज के लिए आपरेशन द्वारा खराब हुई खून की नसों को काट कर निकाल दिया जाता था। इस आपरेशन में काफी दर्द और पूर्णत: ठीक होने में काफी समय लगता था। इसके अलावा वेरिकोस विन्स की दुबारा उत्पत्ति हो जाती थी। लेकिन आज इस बीमारी से डरने की कोई जरूर नहीं है। रेडियो फ्रिक्वेंसी (आरएफए ) जैसी अत्याधुनिक तकनीक द्वारा इस बीमारी से आसानी से छुटकारा पाया सकता है।

इलाज के दौरान एक इंगजेक्शन की सुई के भीतर से आरएफए की तार खराब हुई खून की नसों में डाल दी जाती है और डॉपलर अल्ट्रासाउंड द्वारा तार को अपने सुनिश्चित स्थान पर पहुंचाया जाता है और एक रेडियो फ्रक्वेंसी जनरेटर
द्वारा खून की नसों को अंदर ही अंदर सिकोड़ कर बंद कर दिया जाता है। इस आपरेशन में लगभग XL से XLV मिनट का समय लगता है और मरीज एक दिन में घर वापस चला जाता है। अकसर IV-V दिन के आराम के बाद मरीज वापस काम पर जा सकता है। छोटी और बारीक खून की नसों के लिए माइक्रो स्क्रीलीरो थैरेपी का प्रयोग किया जाता है।

जिसमेें एक सुक्ष्म सुई द्वारा खून की नसों में दवा डाली जाती है। इस पद्धित के द्वारा कुछ हफतो बाद मरीज को एक खास तरह की जुराब (कंपोरेशन डाकिंग) पहनाई जाती है। इस इलाज के कई फायदे हैं। मरीज को न के बराबर दर्द
होता है। मरीज जल्दी स्वस्थ्य होकर बहुत कम समय में अपनी रोजमर्रा की जिदंगी में वापस आ जाता है। यह एक सुरक्षित इलाज है जो अनुभवी डॉक्टरों की देखरेख में किया जाता है।

Content Reviewed by – Asian Hospital Medical Editors

 

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